-सरकारी स्कूलों में १५५८ विद्यार्थियों की आंखें कमजोर-
-फंड न होने के कारण समय पर वितरित नहीं हो रहे चश्में-
-परमेश त्यागी-
जगाधरी। भविष्य का सपना देखने वाली आंखों पर कमजोरी का खतरा मंडरा रहा है। खास बात यह है कि स्कूली बच्चें इस खतरे से जूझ रहे हैं। स्कूली बच्चों की नजर कमजोर हो रही है, इस तथ्य पर स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट ने मोहर लगा दी है। जिले के ३४८ सरकारी स्कूलों में ४८ हजार ७६ बच्चों का स्वास्थ्य जांचने के बाद यह खुलासा हुआ है। यहां पर गौर करने वाली बात यह है कि अधिकांश विद्यार्थियों को फंड की कमी की वजह से समय रहते चश्में वितरित नहीं हो पा रहे हैं।
स्वास्थ्य विभाग की टीम ने स्कूल हेल्थ चेकअप कार्यक्रम के तहत जब सरकारी स्कूलों में जाकर बच्चों का स्वास्थ्य जांचा, तो पता चला कि १५५८ विद्यार्थी ऐसे हैं, जिनकी नजर कमजोर है। इसलिए उन्हें चश्मा लगाया जाना है। विभाग के अधिकारियों का कहना है कि २० प्रतिशत बच्चें आंख से जुड़ी बीमारियों से पीडि़त है। अधिकारियों का कहना है कि बच्चों में आंखों से संबंधित बीमारियों का आंकड़ा साल-दर-साल बढ़ रहा है। यह तो महज सरकारी आंकड़ा है। नेत्र रोग विशेषज्ञों का कहना है कि असल में समस्या और ज्यादा गंभीर है। नेत्र रोग विशेषज्ञ डा. शालिनी का कहना है कि उनके क्लीनिक पर हर रोज २० बच्चें ऐसे आते हैं, जो आंख से संबंधित किसी न किसी बीमारी से ग्रस्त होते हैं।
फंड की वजह से नहीं वितरित हो पाए चश्में-
स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की मानें तो जिन विद्यार्थियों की आंखें कमजोर पाई गई है, उनमें से अभी तक १४० विद्यार्थियों को ही चश्में वितरित हो पाए हैं। जबकि विभाग की ओर से १५५८ विद्यर्थियों को चश्में वितरित किए जाने थे। विभाग के अधिकारियों का कहना है कि समय पर फंड न मिलने की वजह से चश्में वितरित करने में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। यहां पर गौर करने वाली बात यह है कि अगर समय रहते कमजोर आंखों वाले विद्यार्थियों को चश्में नहीं मिलें, तो उनके चश्में का नंबर बढऩा लाजमी है। ऐसे में अगर उन्हें पुराने नंबर वाले चश्में वितरित कर दिए गए, तो वे उनके किसी काम के नहीं होंगे।
घर पर ही करें अपने बच्चें की आंखों की जांच-
बच्चे की नजर सही है या नहीं, इसका पता अभिभावक घर पर भी लगा सकते हैं। अभिभावक घर की दीवार पर एक विजन चार्ट टांग सकते हैं। सप्ताह में एक दिन बच्चे को चार्ट से एक फीट दूरी पर खड़ा करके पढ़वाएं। चार्ट के छोटे अक्षरों को पढऩे में अगर बच्चे के परेशानी हो, तो उसे नेत्र रोग विशेषज्ञ को दिखाएं।
आंख छोटी करके न देखें टीवी-
नेत्र रोग विशेषज्ञ डाक्टर राजेश कुमार ने बताया कि टीवी देखने से बच्चों की आंखों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। उन्होंने कहा कि अगर बच्चा आंख छोटी करके टीवी देख रहा है, तो उसकी नजर कमजोर होने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता। उन्होंने बताया कि टीवी देखने, कंप्यूटर व मोबाइल पर गेम्स खेलने से नजर कमजोर नहीं होती, ऐसा करने से आंखों की मांसपेशियों पर जोर पड़ता है। जिससे व्यक्ति की आंखों में दर्द, सूजन, आंसू आना व आंखों में जलन होने लगती है।
लेट कर पढऩा है खतरनाक-
१०वीं व १२वीं कक्षा के विद्यार्थियों की परीक्षाएं इन दिनों सिर पर है। ऐसे में अधिकांश विद्यार्थियों को घरों में लेट कर पढ़ते हुए देखा जा सकता है। जो कि आंखों के लिए खतरनाक है। नेत्र रोग विशेषज्ञ डा. का कहना है कि स्कूली बच्चों की आंखें कमजोर होने का मुख्य कारण उनकी रिडिंग हैबिट है। उन्होंने बताया कि बच्चें स्कूल में बैठकर पढ़ते हैं। लेकिन वे घर पहुंचने के बाद लेट कर पढऩा शुरू कर देते हैं। जो कि आंखों के लिए नुकसान दायक है।
-जिले के सरकारी स्कूलों में १५५८ विद्यार्थियों की नजर कमजोर पाई गई है। जिन्हें विभाग की ओर से चश्में वितरित किए जाने हैं। अभी तक १४० विद्यार्थियों को ही चश्में वितरित किए गए हैं। बाकि को फंड की वजह से चश्में वितरित करने में दिक्कतें आ रही है। फंड के लिए आला अधिकारियों से मांग की गई है। ताकि समय रहते उन्हें चश्में वितरित किए जा सकें। - डा. शशि बाला, डिप्टी सिविल सर्जन, स्कूल हेल्थ, यमुनानगर।
-फंड न होने के कारण समय पर वितरित नहीं हो रहे चश्में-
-परमेश त्यागी-
जगाधरी। भविष्य का सपना देखने वाली आंखों पर कमजोरी का खतरा मंडरा रहा है। खास बात यह है कि स्कूली बच्चें इस खतरे से जूझ रहे हैं। स्कूली बच्चों की नजर कमजोर हो रही है, इस तथ्य पर स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट ने मोहर लगा दी है। जिले के ३४८ सरकारी स्कूलों में ४८ हजार ७६ बच्चों का स्वास्थ्य जांचने के बाद यह खुलासा हुआ है। यहां पर गौर करने वाली बात यह है कि अधिकांश विद्यार्थियों को फंड की कमी की वजह से समय रहते चश्में वितरित नहीं हो पा रहे हैं।
स्वास्थ्य विभाग की टीम ने स्कूल हेल्थ चेकअप कार्यक्रम के तहत जब सरकारी स्कूलों में जाकर बच्चों का स्वास्थ्य जांचा, तो पता चला कि १५५८ विद्यार्थी ऐसे हैं, जिनकी नजर कमजोर है। इसलिए उन्हें चश्मा लगाया जाना है। विभाग के अधिकारियों का कहना है कि २० प्रतिशत बच्चें आंख से जुड़ी बीमारियों से पीडि़त है। अधिकारियों का कहना है कि बच्चों में आंखों से संबंधित बीमारियों का आंकड़ा साल-दर-साल बढ़ रहा है। यह तो महज सरकारी आंकड़ा है। नेत्र रोग विशेषज्ञों का कहना है कि असल में समस्या और ज्यादा गंभीर है। नेत्र रोग विशेषज्ञ डा. शालिनी का कहना है कि उनके क्लीनिक पर हर रोज २० बच्चें ऐसे आते हैं, जो आंख से संबंधित किसी न किसी बीमारी से ग्रस्त होते हैं।
फंड की वजह से नहीं वितरित हो पाए चश्में-
स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की मानें तो जिन विद्यार्थियों की आंखें कमजोर पाई गई है, उनमें से अभी तक १४० विद्यार्थियों को ही चश्में वितरित हो पाए हैं। जबकि विभाग की ओर से १५५८ विद्यर्थियों को चश्में वितरित किए जाने थे। विभाग के अधिकारियों का कहना है कि समय पर फंड न मिलने की वजह से चश्में वितरित करने में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। यहां पर गौर करने वाली बात यह है कि अगर समय रहते कमजोर आंखों वाले विद्यार्थियों को चश्में नहीं मिलें, तो उनके चश्में का नंबर बढऩा लाजमी है। ऐसे में अगर उन्हें पुराने नंबर वाले चश्में वितरित कर दिए गए, तो वे उनके किसी काम के नहीं होंगे।
घर पर ही करें अपने बच्चें की आंखों की जांच-
बच्चे की नजर सही है या नहीं, इसका पता अभिभावक घर पर भी लगा सकते हैं। अभिभावक घर की दीवार पर एक विजन चार्ट टांग सकते हैं। सप्ताह में एक दिन बच्चे को चार्ट से एक फीट दूरी पर खड़ा करके पढ़वाएं। चार्ट के छोटे अक्षरों को पढऩे में अगर बच्चे के परेशानी हो, तो उसे नेत्र रोग विशेषज्ञ को दिखाएं।
आंख छोटी करके न देखें टीवी-
नेत्र रोग विशेषज्ञ डाक्टर राजेश कुमार ने बताया कि टीवी देखने से बच्चों की आंखों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। उन्होंने कहा कि अगर बच्चा आंख छोटी करके टीवी देख रहा है, तो उसकी नजर कमजोर होने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता। उन्होंने बताया कि टीवी देखने, कंप्यूटर व मोबाइल पर गेम्स खेलने से नजर कमजोर नहीं होती, ऐसा करने से आंखों की मांसपेशियों पर जोर पड़ता है। जिससे व्यक्ति की आंखों में दर्द, सूजन, आंसू आना व आंखों में जलन होने लगती है।
लेट कर पढऩा है खतरनाक-
१०वीं व १२वीं कक्षा के विद्यार्थियों की परीक्षाएं इन दिनों सिर पर है। ऐसे में अधिकांश विद्यार्थियों को घरों में लेट कर पढ़ते हुए देखा जा सकता है। जो कि आंखों के लिए खतरनाक है। नेत्र रोग विशेषज्ञ डा. का कहना है कि स्कूली बच्चों की आंखें कमजोर होने का मुख्य कारण उनकी रिडिंग हैबिट है। उन्होंने बताया कि बच्चें स्कूल में बैठकर पढ़ते हैं। लेकिन वे घर पहुंचने के बाद लेट कर पढऩा शुरू कर देते हैं। जो कि आंखों के लिए नुकसान दायक है।
-जिले के सरकारी स्कूलों में १५५८ विद्यार्थियों की नजर कमजोर पाई गई है। जिन्हें विभाग की ओर से चश्में वितरित किए जाने हैं। अभी तक १४० विद्यार्थियों को ही चश्में वितरित किए गए हैं। बाकि को फंड की वजह से चश्में वितरित करने में दिक्कतें आ रही है। फंड के लिए आला अधिकारियों से मांग की गई है। ताकि समय रहते उन्हें चश्में वितरित किए जा सकें। - डा. शशि बाला, डिप्टी सिविल सर्जन, स्कूल हेल्थ, यमुनानगर।
No comments:
Post a Comment