Monday, March 28, 2011

थियेटर फेस्टिवल का आयोजन : गवाह नाटक का मंचन

यमुनानगर। डीएवी गल्र्स कालेज में सोमवार को थियेटर फेस्टिवल का आयोजन किया गया। जिसमें अंग्रेजी लेखिका अगाथा क्रिस्टी की रचना पर आधारित सुप्रसिद्ध कथाकार संजय सहाय द्वारा निर्देशित गवाह नाटक का मंचन हुआ। नाटक को देखकर दर्शक इतने अभिभुत हुए कि कालेज का सभागार आधे घंटे तक तालियों से गूंजता रहा। कलाकारों द्वारा की गई अदाकारी की सभी ने प्रशंसा की। कालेज प्रिंसिपल डा. सुषमा आर्य ने नाटक के निर्देशकों, कलाकारों व दर्शकों का आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम के दौरान मुकंद लाल शिक्षण संस्थाओं के महासचिव डा. रमेश कुमार मुख्य अतिथि रहे। मौके पर सुप्रसिद्ध पत्रकार अजीत राय भी उपस्थित रहे।

मर्डर मिस्ट्री पर आधारित गवाह नाटक के दौरान दिखाया गया कि अदालत में केस को किस प्रकार से तरोड़ा मोड़ा जाता है। हत्यारे के खिलाफ ढेर सारे सबूत व गवाह होने के बावजुद किस प्रकार से ज्यूरी सिस्टम को दिगभ्रमित किया जा सकता है। नाटक का क्लाइमेक्स देखकर सभागार में बैठे दर्शक तब अचंभित रह जाते हैं। जब वास्तव में हत्या करने वाले लियोनार्ड वोल को अदालत से बाइज्जत बरी कर दिया जाता है। इस सारी प्रक्रिया में शहर का नामी वकील भी धोखा खा जाता है।
नाटक में लियोनार्ड वोल पर एक अधेड़ उम्र की औरत एमली फे्रंच की हत्या का आरोप है। उसके खिलाफ ढेर सारे सबूत व गवाह है। वोल चाहता है कि वकील सर विलफ्रीड उसकी पत्नी रोमेन को गवाही के लिए बुलाए। लेकिन वह ऐसा नहीं करता। फिर अचानक रोमेन सरकारी गवाह बनकर अपने पति वोल के खिलाफ गवाही देती है और कहती है कि वह उसकी पत्नी नहीं है और वोल ने ही एमली की हत्या की है। जिस कारण वोल की फांसी ज्यादा पुख्ता हो जाती है। इसी बीच वोल के वकील के पास कुछ चि_ियां आती है। जिसमें लिखा होता है कि रोमेन अपने प्रेमी के साथ मिलकर वोल को फांसी पर लटकवाना चाहती है। ताकि वह उससे आजाद हो सके। इसके बाद कोर्ट में वोल के प्रति सहानुभूति पैदा हो जाती है। जिस कारण वह बरी हो जाता है। बाद में पता चलता है कि वोल व रोमेन दोनों ने मिलकर १५ करोड़ रुपयों के लिए एमली फे्रंच की हत्या की थी और सारा ड्रामा खुद ही रचा था। 
नाटक के दौरान जटिल संवादों ने कलाकारों ने इस प्रकार से प्रस्तुत किया कि वह मंच पर जीवंत हो उठे। नाटक में बताया गया कि वहीं सच नहीं होता, जो दिखता है। आज के समय में अगर इस प्रकार की घटना घटती तो मीडिया उसपर कितना उन्माद पैदा करता, इसका अंदाजा खुद ही लगाया जा सकता है। ज्यूरी सिस्टम की इन खामियों से सबक ले, मीडिया को कोर्ट से पहले फैसले नहीं सुनाने चाहिए और तथ्यों पर आधारित कोर्ट के फैसले तक संयम बरतना चाहिए।
नाटक की समाप्ति पर निर्देशक संजय सहाय ने कहा कि इस प्रकार के नाटक हमें समाज में हो रही घटनाओं से जोड़ते हैं। उन्होंने सभागार में बैठे सभी लोगों का आभार व्यक्त किया।
डा. रमेश ने कहा कि नाटक में कलाकारों द्वारा प्रस्तुत अभिनय की जितनी तारीफ की जाए, वह कम है। कलाकारों ने हर घटना को इतनी बारिकी से प्रस्तुत किया कि घटना जीवंत हो उठी। कालेज प्रिंसिपल डा. सुषमा आर्य ने कहा कि इस प्रकार के आयोजन का उत्सव कालाकारों की प्रतिभा को निखाराना है। उन्होंने कहा कि आने वाले समय में इस प्रकार और भी आयोजन किए जाएंगे।


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