- बिना द्रोण के ही हो रहे अर्जुन तैयार-
- गरिमा मलिक स्कवॉयड शिविर में लेगी भाग-
- सोनिया प्री नेशनल शिविर का बनेगी हिस्सा-
यमुनानगर। डीएवी गल्र्स कालेज में बिना द्रोण के अर्जुन तैयार हो रहे हैं। ऐसा हम नहीं कह रहे, बल्कि शुटिंग प्रतियोगिताओं में भाग लेने वाली छात्राओं की उपलब्ध्यिां यह बयां कर रही है। कालेज की छात्रा गरिमा मलिक (पिस्टल शुटर) २८ सितंबर से छह अक्टूबर तक पुणे में आयोजित स्कवॉयड शिविर (इंटरनेशन में जाने से पहले की ट्रायल) में भाग लेने जा रही है। जबकि सोनिया राजपूत (राइफल शुटर) अहमदाबाद में ११ से २१ अक्टूबर तक आयोजित प्री नेशनल शिविर का हिस्सा बनेगी। तीनों खिलाडिय़ों की मानें तो इस गेम में आगे बढऩे के लिए उन्होंने बिना द्रोण के ही बुलंदियों को छूआ है। उन्हें उम्मीद है कि डीएवी गल्र्स कालेज में १४ व १५ सितंबर को आयोजित इंटर कालेज शुटिंग चैंपियनशिप में बेस्ट परफोर्म करेंगी।
बी-कॉम प्रथम वर्ष की छात्रा गरिमा ने बताया कि उसने वर्ष २०१० में फरीदाबाद में आयोजित इंटर स्कूल नेशनल शुटिंग चैंपियनशिप में गोल्ड, नवंबर २०१० में गवाहटी में आयोजित जीवी मावलंकर शुटिंग चैंपियनशिप में गोल्ड, अक्टूबर २०१० में फरीदाबाद में आयोजित स्टेट शुटिंग चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीत चुकी है। गरिमा की मानें तो शुरू में तो उसने शौक के तौर पर शुटिंग करनी शुरू की थी। लेकिन जब उसका इस खेल में रूचि बढ़ गई, तो उसने ज्यादा से ज्यादा समय इस खेल को देना शुरू कर दिया। गरिमा ने बताया कि स्कूल लेवल पर थोड़ा बहुत सीखाया गया है।
बीए-प्रथम वर्ष की छात्रा सोनिया राजपूत ने बताया कि अगस्त २०११ में दिल्ली में आयोजित हरियाणा स्टेट शुटिंग चैंपियनशिप में गोल्ड जीता है। स्कूल लेवल पर स्टेट में सिल्वर मेडल जीता है। उन्होंने बताया कि वह शुरू से ही शूटर बनाना चाहती थी। यही वजह है कि वह रोजाना ६ से ७ घंटे प्रैक्टिस करती है। उसे उम्मीद है कि वह अहमदाबाद में आयोजित शिवर में बेस्ट परफोरमेंस देगी और नेशनल में चयनित होकर लौटेगी।
बहुत महंगा है गेम-
शूटिंग में कैरियर बनाना इतना आसान नहीं है, जितना की लोग समझते है। इसके पीछे एक कारण यह भी है कि खेल बहुत महंगा है। क्योंकि इस खेल के लिए शुटिंग रेंज का होना बेहद जरुरी है। इसके अलावा प्रैक्टिस के लिए रोजना वैपन, टारगेट और पैलेट्स (गोलियां) की जरुरत होती है। यही वजह है कि आम घरों के बच्चें इस खेल में कैरियर बनाने से कतरा हैं। डीएवी गल्र्स कालेज के खेल विभाग की अध्यक्षा विभा गुप्ता ने बताया कि कालेज में शूटिंग की प्रेक्टिस करने वाली खिलाडिय़ों को सभी प्रकार की सुविधाएं मुहैया करवाई जाती है। उन्होंने बताया कि १० मीटर एयर राइफल के लिए एक विशेष प्रकार की डे्रस की जरुरत पड़ती है। जिसे कालेज ने किराए पर लेकर खिलाडिय़ों को मुहैया करवाया है।
सरकार दें ध्यान-
सारिका, नवनीत, सोनिया, सुजाता, गरिमा, सोनिया राजपूत, पारुल का कहना है कि सरकार को इस खेल की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए। ताकि छात्राएं इस क्षेत्र में अपना कैरियर बना सकें। अगर इस खेल के जिला स्तर पर कोचिज उपलब्ध होंगे, तो उन्हें सिखने में ज्यादा मदद मिल जाएगी। उन्होंने कहा कि इस खेल की शूटिंग रेंज का भी प्रदेश में अभाव है। प्रदेश में तीन-चार जिलों में ही शूटिंग रेंज है। यह भी वजह है कि इस खेल को ज्यादा बढ़ावा नहीं मिल पा रहा है।
- गरिमा मलिक स्कवॉयड शिविर में लेगी भाग-
- सोनिया प्री नेशनल शिविर का बनेगी हिस्सा-
यमुनानगर। डीएवी गल्र्स कालेज में बिना द्रोण के अर्जुन तैयार हो रहे हैं। ऐसा हम नहीं कह रहे, बल्कि शुटिंग प्रतियोगिताओं में भाग लेने वाली छात्राओं की उपलब्ध्यिां यह बयां कर रही है। कालेज की छात्रा गरिमा मलिक (पिस्टल शुटर) २८ सितंबर से छह अक्टूबर तक पुणे में आयोजित स्कवॉयड शिविर (इंटरनेशन में जाने से पहले की ट्रायल) में भाग लेने जा रही है। जबकि सोनिया राजपूत (राइफल शुटर) अहमदाबाद में ११ से २१ अक्टूबर तक आयोजित प्री नेशनल शिविर का हिस्सा बनेगी। तीनों खिलाडिय़ों की मानें तो इस गेम में आगे बढऩे के लिए उन्होंने बिना द्रोण के ही बुलंदियों को छूआ है। उन्हें उम्मीद है कि डीएवी गल्र्स कालेज में १४ व १५ सितंबर को आयोजित इंटर कालेज शुटिंग चैंपियनशिप में बेस्ट परफोर्म करेंगी।
बी-कॉम प्रथम वर्ष की छात्रा गरिमा ने बताया कि उसने वर्ष २०१० में फरीदाबाद में आयोजित इंटर स्कूल नेशनल शुटिंग चैंपियनशिप में गोल्ड, नवंबर २०१० में गवाहटी में आयोजित जीवी मावलंकर शुटिंग चैंपियनशिप में गोल्ड, अक्टूबर २०१० में फरीदाबाद में आयोजित स्टेट शुटिंग चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीत चुकी है। गरिमा की मानें तो शुरू में तो उसने शौक के तौर पर शुटिंग करनी शुरू की थी। लेकिन जब उसका इस खेल में रूचि बढ़ गई, तो उसने ज्यादा से ज्यादा समय इस खेल को देना शुरू कर दिया। गरिमा ने बताया कि स्कूल लेवल पर थोड़ा बहुत सीखाया गया है।
बीए-प्रथम वर्ष की छात्रा सोनिया राजपूत ने बताया कि अगस्त २०११ में दिल्ली में आयोजित हरियाणा स्टेट शुटिंग चैंपियनशिप में गोल्ड जीता है। स्कूल लेवल पर स्टेट में सिल्वर मेडल जीता है। उन्होंने बताया कि वह शुरू से ही शूटर बनाना चाहती थी। यही वजह है कि वह रोजाना ६ से ७ घंटे प्रैक्टिस करती है। उसे उम्मीद है कि वह अहमदाबाद में आयोजित शिवर में बेस्ट परफोरमेंस देगी और नेशनल में चयनित होकर लौटेगी।
बहुत महंगा है गेम-
शूटिंग में कैरियर बनाना इतना आसान नहीं है, जितना की लोग समझते है। इसके पीछे एक कारण यह भी है कि खेल बहुत महंगा है। क्योंकि इस खेल के लिए शुटिंग रेंज का होना बेहद जरुरी है। इसके अलावा प्रैक्टिस के लिए रोजना वैपन, टारगेट और पैलेट्स (गोलियां) की जरुरत होती है। यही वजह है कि आम घरों के बच्चें इस खेल में कैरियर बनाने से कतरा हैं। डीएवी गल्र्स कालेज के खेल विभाग की अध्यक्षा विभा गुप्ता ने बताया कि कालेज में शूटिंग की प्रेक्टिस करने वाली खिलाडिय़ों को सभी प्रकार की सुविधाएं मुहैया करवाई जाती है। उन्होंने बताया कि १० मीटर एयर राइफल के लिए एक विशेष प्रकार की डे्रस की जरुरत पड़ती है। जिसे कालेज ने किराए पर लेकर खिलाडिय़ों को मुहैया करवाया है।
सरकार दें ध्यान-
सारिका, नवनीत, सोनिया, सुजाता, गरिमा, सोनिया राजपूत, पारुल का कहना है कि सरकार को इस खेल की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए। ताकि छात्राएं इस क्षेत्र में अपना कैरियर बना सकें। अगर इस खेल के जिला स्तर पर कोचिज उपलब्ध होंगे, तो उन्हें सिखने में ज्यादा मदद मिल जाएगी। उन्होंने कहा कि इस खेल की शूटिंग रेंज का भी प्रदेश में अभाव है। प्रदेश में तीन-चार जिलों में ही शूटिंग रेंज है। यह भी वजह है कि इस खेल को ज्यादा बढ़ावा नहीं मिल पा रहा है।
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